विषयानुक्रम
आमुख
१. मूल असंगतियाँ
२. लखनऊ का मुस्लिम-पूर्व इतिहास
३. मुस्लिम शासन के अन्तर्गत लखनऊ
४. लखनऊ की नवाब
५. आसफ़ उद्दौला
६. तथाकथित महान इमामबाड़ा
७. तथाकथित हुसैनाबादी इमामबाड़ा
८. तथाकथित इमामबाड़ों के हिन्दू लक्षण
सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची
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आमुख
भारतीय इतिहास पुनर्लेखन संस्थान ने एक अति उल्लेखनीय और दूरगामी प्रभावकारी उपलब्धि हस्तगत कर ली है। वह यह है कि कश्मीर से कन्याकुमारी अन्तरीप तक, सभी ऐतिहासिक मध्यकालीन भवन, जो भारत में इधर-उधर दृष्टिगोचर होते हैं, मुस्लिम-पूर्व काल की सम्पत्ति हैं. चाहे वे आज मकबरों और मस्जिदों के रूप में मुस्लिम आधिपत्य, कब्जे में ही क्यों न हों।
संस्थान ने, अपने शोध-कार्य के विदग्धकारी प्रमाणों के रूप में कुछ पुस्तकें प्रकाशित की हैं जिनके शीर्षक इस प्रकार हैं—
(१) ताजमहल हिन्दू राजभवन है;
(२) फतहपुर सीकरी एक हिन्दू नगर है;
(३) आगरा का लालकिला हिन्दू भवन है, और
(४) दिल्ली का लालकिला हिन्दू लालकोट है।
वर्तमान शोध-ग्रन्थ भी उसी ऐतिहासिक अन्वेषणमाला की एक कड़ी है। इसमें सिद्ध किया गया है कि लखनऊ स्थित तथाकथित इमामबाड़े भी प्राचीन हिन्दू राजभवन हैं जो विजयोपरान्त मुस्लिम आधिपत्य में चले गए थे।
यद्यपि आधुनिक लखनऊ में इधर-उधर फैले हुए छोटे-बड़े अनेक भवनों को 'इमामबाड़े' के नाम से अत्यन्त सहज, सरल रूप से सम्बोधित किया जाता है, तथापि इस ग्रन्थ में 'इमामबाड़ा' शब्द मात्र दो भवनों के लिए ही प्रयुक्त किया गया है- अर्थात् बड़ा इमामबाड़ा और हुसैनाबादी इमामबाड़ा नाम से पुकारे जाने वाले भवनों के लिए यह 'इमामबाड़ा' शब्द उपयोग में लाया गया है। हम इन भवनों पर ही विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं क्योंकि ये दोनों सर्वाधिक विख्यात हैं, और साक्ष्य प्रस्तुत करने में भी सुविधा होती है, इसलिए भी। इन दो इमामबाड़ों की विशिष्टताओं से सुपरिचित, सुविज्ञ हो जाने पर पाठक को यह तथ्य मालूम हो जाना कठिन नहीं होगा कि लखनऊ स्थित अन्य सभी ऐतिहासिक संरचनाएँ पूर्वकालिक हिन्दू भवन ही हैं चाहे आज उनको मुस्लिम मकबरों अथवा मस्जिदों के रूप में घोषित, प्रचारित अथवा प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रसंगवश, हमने इस पुस्तक में कुछ अन्य ऐतिहासिक संरचनाओं का भी उल्लेख कर दिया है, जैसे सुप्रसिद्ध पत्थर का पुल जो लखनऊ नगर में से गुजरने वाली गोमती नदी के ऊपर बना हुआ है। वह पुल भी बहुत प्राचीन हिन्दू निर्मित है यद्यपि आज इसे भी, झूठे ही, मुस्लिम मूलोद्गम का बताकर, अति सरलतापूर्वक प्रचारित किया जा रहा है।
इस्लामी प्रचार की शताब्दियों ने जिस प्रकार जनमानस को पूरी तरह से भ्रमित कर दिया है और किसी भी युक्तियुक्त विचार-पद्धति को हृदयंगम करने से स्थायी रूप में अक्षम, असमर्थ कर दिया है वह अत्यन्त विद्धकारी, हतप्रभ करने वाला है। यह संघातिक अनुभूति हमें उस समय प्राप्त हुई जब हम संयोग-वश लखनऊ-निवासियों से बातचीत कर रहे थे। उनमें से बहुत सारे लोग लखनऊ के अति पुरातन निवासी होने का दावा करने वाले अथवा लखनऊ में अनेक पीढ़ियों से निवास करने वाले परिवारों में जन्म लेने के कारण शेखी बखान करने वाले होते भी यहीं मानते चले आ रहे प्रतीत होते हैं कि लखनऊ में न केवल सभी बड़े भवन अथवा पुल ही नवाबों द्वारा बनवाए गए थे अपितु नवाबों से पूर्व सम्पूर्ण लखनऊ नगर ही अस्तित्त्व-हीन था और मानों स्वयं अल्लाह द्वारा ही यह नगर उनके लिए विशेष रूप में उपहार-स्वरूप प्रदान कर दिया गया था।
जब स्वयं लखनऊ वाले ही इतने मतवादी हैं और लखनऊ के पूर्ववृत्तों में अथवा इसके ऐतिहासिक भवनों में अथवा गोमती नदी पर बने हुए पुल की पूर्वकालीन जानकारी प्राप्त करने के प्रति दूषित अन्यमनस्कता प्रकट करते हैं, तब कोई आश्चर्य नहीं है कि जहां भी कहीं भारतीय इतिहास का प्रशिक्षण अथवा अध्ययन किया जा रहा है, चाहे विश्व का वह जो भी स्थान हो, वहाँ लखनऊ का मूलोद्गम मुस्लिमों द्वारा होने की झूठी कथा को शीघ्र प्रभावित होने वाले जनमानस पर उद्योग, प्रयत्नपूर्वक लादने का दुष्प्रयत्न सतत, निरन्तर चल ही रहा है।
प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रयोजन विश्व की आँखें उस शैक्षिक-मनोरोग की महामारी के प्रति खोल देने का है जो मध्यकालीन भवनों के पूर्व इतिहास का ज्ञान प्राप्त करने वाले प्रयत्नों को हतोत्साहित करता है, चाहे कोई व्यक्ति उस परम्परागत विवरण में कितनी ही असंगतियों, बेहूदगियों की ओर ध्यान आकर्षित क्यों न कर
दे।